बेटी की व्यथा-10-Mar-2024
बेटी की आह ( शोषण और बलात्कार)
कोई रोटियां हैं हम नहीं,हां बेटियां तेरी हैं हम
नोंचते हों बोटियां ,आती नहीं है क्यों शरम।
बेटियां तेरी बनूं या, हूं किसी भी गैर की
जुतियां फिर क्यूं बनी हूं,हर किसी के पैर की
जब जो चाहे रौंद दे,ए कौन सा तेरा करम,
नोंचते हों बोटियां ,आती नहीं है क्यों शरम। - १
न नियत है साफ तेरी,न जरा भी सोंचता
कैसा बेटा,बाप है तू,उम्र भी न देखता
चलना न सीखी अभी अंगुली पकड़ मां बाप की
हैवानियत ने छीन ली तेरी सहारा हाथ की
मैं गिड़गिराती चीखती, तुझको न आया है रहम
नोंचते हों बोटियां ,आती नहीं है क्यों शरम। -२
क्या पाप हूं अपराध हूं या हूं सृष्टि से अलग
या भार हूं धरती का मैं या हूं सभी से मैं बिलग
जो भी हूं हां हूं तेरी जीवन का मैं आधार हूं
जो रचा तुमको यहां हां मैं वह रचनाकार हूं
तुम दरिंदों के लिए रिस्ते नहीं न है रसम ?
नोंचते हों बोटियां ,आती नहीं है क्यों शरम। -३
कहने को अब क्या बचा नंगी खड़ी मैं सोचती
अस्मिता लुटती रही पर कुछ नहीं मैं कर सकी
मैं दलित मजबूर बेटी, हूॅं मगर इस देश की
हर कोई दर्शक बना,जाती रही मैं नोचती
आज के नेता उचक्के न समझते हैं मरम,
नोंचते हों बोटियां ,आती नहीं है क्यों शरम। -४
किस बात का तू बाप है किस बात का बेटा है तू
न शर्म है तुझमें कहीं , तन नोंचना सीखा है तू
शर्म से जिंदा नहीं होगी तेरी वह आज मां
जिस घिनौने कार्य से थर्रा गया है आसमां
भार है धरती का तू,पापी असुर तू है अधम,
नोंचते हों बोटियां ,आती नहीं है क्यों शरम। -५
रचनाकार
रामबृक्ष बहादुरपुरी
अम्बेडकरनगर उत्तर प्रदेश
Varsha_Upadhyay
14-Mar-2024 06:51 PM
Nice
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Mohammed urooj khan
11-Mar-2024 02:26 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
10-Mar-2024 09:57 PM
बहुत खूब
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